कई बार कहानी वहाँ से शुरू नहीं होती किरदार आज रहते हैं, बल्कि वहाँ से शुरू होती है जिस शहर को किरदार ने बहुत पहले छोड़ दिया था। हर किसी के पास किसी-न-किसी एक शहर से नफ़रत और प्यार करने की कोई- न कोई अदना-सी वजह होती ही है।आइये आपको ऐसी ही एक प्रेम कहानी से अवगत कराया जाये जो 46 लोगो को एक साथ हुई |
क्या किसी जगह से बेइम्तहा मोहब्बत हो सकती हैं? ऐसी मोहब्बत जो भुलाई ना जा सके | मोहब्बत आदत बन जाये तो क्या वो गलत हैं? लगभग 1 महीना होने को हैं कि हम बनतालाब छोड़ कर दिल्ली आ चुके हैं, लेकिन आत्मा इस बात की गवाही नहीं दे रही की हम उस जगह को छोड़ चुके हैं | विश्वास नहीं होता कि हम कभी उस जगह पर विद्यार्थी के रूप में नहीं जा पाएंगे | वो कहते हैं ना कि अच्छी किताबें और अच्छे लोग जल्दी समझ नहीं आते उन्हें पढ़ना पड़ता हैं | शुरुआती दौर में कुछ ऐसा ही हुआ हमारे साथ | हमें समझ ही नहीं आ रहा था की हमारे साथ असल में हो क्या रहा हैं | देश के अलग अलग शहरो से जब हम सब अपना बोरिया बिस्तर बाँध कर बनतालाब आये तो हमें ये समझने में काफ़ी समय लगा की ऐसी जागह हक़ीक़त में कैसे हो सकती हैं?
हम 46 जनो का एक छोटा सा परिवार एक बड़े से विकराल कैंपस में ,जहाँ चारो तरफ नज़र घुमा कर देखे तो बस पहाड़ और उन पहाड़ो में बसा घना जंगल नज़र आता था | हम सबके यहाँ पर अलग अलग अनुभव रहे | कुछ लोगो को वहाँ नुज़रत नाम की एक भटकती हुई आत्मा के होने का आभास होता था, तो वही कुछ लोगो को वो एक जंगल झाडी वाली वीरान जगह लगती थी, जहाँ आकर ज़िन्दगी बर्बाद हो गया | वही कुछ मेरे जैसे लोग भी थे जिन्हे उस जगह पर ईश्वर का वास होने का आभास हुआ |
वो पहाड़ी मुझे ऐसी प्रतीत होती थी मानो स्वयं भोले बाबा त्रिशूल लिए अपनी बाहे फैलाये हमारे कैंपस को अपनी गोद में बिठाये हुए हैं | रात के समय जब चाँद निकलता था तो ऐसा लगता था मानो शिव ने अपनी जटाओ के उप्पर चन्द्रमा को धारण कर लिया हो | सितारे तो ऐसे दिखाई देते थे जैसे आसमान ने सितारों की चमकीली चादर ओढ़ रखी हो | एक भी दिन ऐसा नहीं जाता था जब टूटता हुआ तारा देखने को ना मिले | और जब रात को कैंपस में बिजली चली जाती थी तब तो आहा! क्या कहने | मैं हर रात वहाँ बिजली के जाने का इंतज़ार करती थी | अंधेरा भी इतना खूबसूरत हो सकता था ये वहाँ जाकर पता चला |
ठंडी हवाएं, खुला आसमान और पहाड़ो से आई छनी हुई हवा जब चेहरे को छू कर गुज़रती थी तब लगता था यही तो जीवन हैं जो इस वक्त हम जी रहे हैं, ऐसा क्या पुण्य का काम किया था पिछले जन्म में जो यहाँ आ कर रहने का सौभाग्य हुआ | आसमान को तो एक टक्क कितनी भी देर तक निहारा जा सकता था | उसकी खूबसूरती ऐसी लगती ऐसा लगता थी जैसे कोई जादुई सपना देख रहे हो |
कॉलेज की छत पर रात को बैठने पर ये आभास होता था की अंतरिक्ष तो बस एक हाथ की दुरी पर हैं और अंतरिक्ष के इतने अजूबे मैंने अपने 22 साल के जीवन काल में कभी नहीं देखे | कभी कभी तो छत पर बैठ कर सितारो की एक लम्बी कगार को आसमान से सीधा धरती की ओर गिरते हुए देखा हैं | ऐसे दृश्य देखने के बाद इंसान खुद से 2 बार सवाल करता था की भाई क्या देख लिया? ये सच था या महज़ एक सपना?
जम्मू में होकर हमेशा मुझे ऐसा लगता था जैसे मैं अपनी ज़िन्दगी का कोई हसीन सपना देख रही हूँ और थोड़ी देर बाद ये सपना टूट जाएगा | इसके बाद तो बस वही दिखावे की दुनिया में चले जाना हैं, जहाँ बस जीने का नाटक करना होता हैं, जहाँ बस सोशल मीडिया पर खुश रहने का ढोंग करना होता हैं, जहाँ झूठ हैं, पाप हैं, प्रदुषण हैं, नकलीपना हैं |
और अब जब नज़र घुमा कर पीछे देखती हूँ तो बनतालाब को इन पंक्तियों में पाती हूँ
तुम थे की थी कोई उजली किरणतुम थे या कोई कलि मुस्काई थी
तुम थे या था सपनों का था सावन, तुम थे की खुशियों की घटा छायी थी
तुम थे के था कोई फूल खिला,तुम थे या मिला था मुझे नया जहां
दो पल रुका ख़्वाबों का कारवां…..
इन 9 महीनों में माता वैष्णो देवी की गोद में शरणागत होकर एक नया जन्म मिला हैं | बदला बदला सा महसूस होता हैं | 9 महीनों तक जैसे ज़िन्दगी का pause बटन दब गया था, किसी चीज़ की कोई चिंता नहीं थी, ऐसा लग रहा था जैसे किसी दिव्य जगह पर रिहैबिलिटेशन करने आए हो | अंत में बस यही लगता हैं की आईआईएमसी जम्मू महज़ एक कॉलेज नहीं हैं, ये एक इमोशन हैं, जो आजीवन यहाँ के एक्सपेरिमेंट बैच के दिलो में राज करेगा |