मैं अपूर्वा मिश्रा ,नॉएडा क़ी एक मिडिल क्लास फैमिली क़ी एक आम सी लड़की | जडे प्रयागराज से होने के कारण गाँव क़ी मिट्टी अपनी मुट्ठी में लिए 29 November 2022 को अपना शहर छोड़ कर जम्मू के लिए रवाना हुई | आज तक मेरे खानदान में पढ़ाई के लिए कोई लड़की अपने शहर के बाहर नहीं निकली थी | मैं पहली हूँ, वो भी गाँव के परिवेश से आती हूँ इसलिए मेरे कंधो पर ज़िम्मेदारियों का बोझ भी कुछ ज़्यादा था, रिश्तेदार नातेदार के व्यंग से भी मैं पूरी तरह अवगत थी | कोई कसर नहीं छोड़ते हैं घुमा के ताना मारने का कि लड़की को इतना दूर भेज रहे हैं ज़रा संभाल के, ज़माना बहुत ख़राब हैं मिश्रा जी | लेकिन वो कहते हैं ना हर सफल बिटिया के पीछे उसके पिता का हाथ होता हैं, मेरे पिता जी का मुझपर अटूट विश्वास था क़ी उन्होंने मुझे जम्मू भेजनें से पहले एक बार भी नहीं सोचा | मेरे फैसले को उन्होंने स्वीकार किया और मुझे बाहर जाने की आज़ादी दी | मेरे जीवन के सभी पड़ाव में मेरी माँ को हमेशा मैंने अपने साथ पाया हैं, फिर चाहे वो प्ले स्कूल में एडमिशन करवाना हो या दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज में एडमिशन करवाना | मेरी माँ हमेशा मेरे साथ होती हैं तो यहां कैसे पीछे हटतीं | मेरे जम्मू चैप्टर की शुरुआत भी मेरी माँ के कमल चरणों से हुई | मुझे जम्मू छोड़ने मेरी माँ मेरे साथ आई थी |जम्मू तवी रेलवे स्टेशन पर 3.30 पर हमारी ट्रेन पहुंच गयी थी |
मैं और माँ इस नाये शहर से बिलकुल अनजान थे | स्टेशन के बाहर निकले तो पता चला अभी भी अंधेरा ही हैं, सूरज निकले में समय था | जैसे जैसे हम गांधीनगर की तरफ आगे बढ़ रहे थे मेरी दिल की धड़कने तेज़ होती जा रही थी | मन में 100 सवाल उमड़ रहे थे, खुद के फैसले पर संशय हो रहा था कि जो मैं करने आई हूँ इतना दूर क्या ये सही हैं मेरे लिए?या मैंने गलत जगह कदम रख दिआ हैं? अगर यहां से असफल होकर घर लौटी तो सब क्या कहेँगे?दुनिया भर की बाते मेरे दिमाग में दौड़ रही थी | अपनी माँ को देख कर एक सुकून मिल रहा था कि माँ साथ हैं, वही दूसरी ओर ये भी लग रगा था कि माँ मुझे आज यहां छोड़ कर चली भी जाएगी और मैं यहाँ कैसे रहूँगी? अपने परिवार से दूर, अपने शहर से दूर?
कॉलेज का पहला दिन सबको अच्छी तरह याद रहता हैं, मेरे साथ भी वैसा ही हुआ पहले दिन जब 4 बजे हम हॉस्टल पहुचें तो मुझे सबसे पहले मेरी रूम मेट सौम्या मिली | नींद में उसने गेट खोला लेकिन फिर भी मुझे पूरी तरह कम्फर्टेबल कराने की कोशिश कर रही थी | दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्री राम कॉलेज से पढ़ी सौम्या से मिलकर मुझे ये लगा की चलो कोई तो हैं डी यू से | सौम्या के मम्मी पापा भी उसे कल ही हॉस्टल छोड़ कर गये थे इसलिए हम दोनों एक दूसरे का दुख काफ़ी हद तक समझ पा रहे थे |
सुबह क्लास शुरू हुई, वहाँ हर किसी का चेहरा देख कर मुझे बस यही लगा कि इतने प्रतिभावान लोग हैं यहां, मैं कहाँ गलत जगह आगयी हूँ | इनके बीच मैं तो स्टैंड ही नहीं करती | सेल्फ कॉन्फिडेंस की धज्जिया उड चुकी थी | फिर शाम को माँ के जाने का समय हुआ, मैं और सौम्या उन्हें छोड़ने जम्मू तवी रेलवे स्टेशन गये | माँ को सी ऑफ करते वक्त मैंने माँ की आँखों में आंसू देखे | जिसको छुपाते हुए वो मुझसे बोली क्या हुआ दुखी मत होना तुम अकेले नहीं हो यहाँ, सभी अपने मम्मी पापा को छोड़ कर आये हैं | “सौम्या, इसका ध्यान रखना, तुम मुझे मेरी पूर्वा की तरह ही लगती हो, दोनों अच्छे से रहना साथ में”, यह बोलते हुए माँ ने अपने आंसू पोछे | सौम्या ने भी माँ को आश्वासन दिया की आंटी आप चिंता मत करिये, मैं इसको देख लुंगी, आप जाइये आराम से |
माँ को छोड़ने के बाद हम वापस गांधीनगर आ गये | वापस आकर हमने साथ खाना खाया | खाना खाने के बाद मुझे जो घर की याद आई की मैं फूट फूट कर सौम्या के सामने रो दी | उसने मुझे बुहत अच्छे से समझाया, इतने बड़े घर परिवार से आने के बाद भी सौम्या से हमेशा अपनेपन् का भाव मिला, एक ही कमरे में जैसे कोई बहन मिल गयी हो | साथ हसना रोना, खाना , नाचना गाना क्या क्या नहीं किया करते थे | उस दिन से आख़री दिन तक हम साथ रहे और मुझे मेरे जम्मू परिवार का पहला सदस्य इस तरह से हासिल हुआ |