असम हर साल क्यों झेलता है बाढ़, क्यों हो जाती हैं सरकारें लाचार?

असम राज्य में हर साल आने वाले बाढ़ के कारण लाखों लोग प्रभावित होते हैं.  अनेकों लोगों की मौत भी हो जाती है. हजारों एकड़ फसलें डूब जाती हैं और सैकड़ों करोड़ रुपये का नुकसान हो जाता है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर असम में ऐसा क्या है कि वहां पर हर साल इतनी तबाही होती है और इसके बावजूद कोई भी सरकार इस तबाही को रोकने में नाकाम हो जाती है. आखिर क्यों और राज्यों की तुलना में असम को ही सबसे ज्यादा भुगतना पड़ता है ? 

भारत के नक्शे पर देखें तो असम सुदूर उत्तर पूर्व में बसा राज्य है. इस राज्य से होकर ब्रह्मपुत्र नदी गुजरती है. यह देश की दूसरी सबसे बड़ी नदी है और इसकी लंबाई करीब 3 हजार किलोमीटर है. असम में हर साल जो बाढ़ आती है, उसकी सबसे बड़ी वजह यही नदी और इसका भौगोलिक विस्तार है. 

छोटी नदियां कैसे असम में बाढ़ के लिए जिम्मेदार 

ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत में मानसरोवर झील के पास से निकलती है. ये तिब्बत से आती है और अरुणाचल प्रदेश से भारत में प्रवेश करती है. तिब्बत से निकलने और अरुणाचल प्रदेश तक आने वाला रास्ता पूरा पहाड़ी है तो ब्रह्मपुत्र की धारा तेज नहीं होती है. लेकिन जैसे ही ये अरुणाचल प्रदेश से नीचे आती है और असम में प्रवेश करती है वो पहाड़ी से सीधे मैदान में आ जाती है और इसकी वजह से ब्रह्मपुत्र के पानी में रफ्तार आ जाती है और इसका फैलाव भी हो जाता है. 

मैदान में आने के बाद कहीं-कहीं तो ब्रह्मपुत्र की चौड़ाई करीब 10 किलोमीटर तक हो जाती है. आप आसानी से अंदाजा लगा सकते हैं कि इसका विस्तार कितना होता होगा. बारिश के दिनों में पहाड़ों पर बारिश ज्यादा होती है तो ब्रह्मपुत्र में भी बारिश का पानी आता है, जिसकी वजह से जून-जुलाई के महीने में इसका रूप और भयंकर हो जाता है. लेकिन असम में बाढ़ की ये इकलौती वजह नहीं है. इसकी दूसरी सबसे बड़ी वजह है ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियां. छोटी-बड़ी करीब 35 ऐसी नदियां हैं जो असम में अलग-अलग जगहों पर ब्रह्मपुत्र में मिलती हैं और ब्रह्मपुत्र को और ज्यादा भयानक बना देती हैं.

इसे थोड़ा और विस्तार से समझें तो हिमालय से एक नदी निकलती है जिसको सांगपो कहते हैं. अरुणाचल प्रदेश के जरिए ये नदी भारत में प्रवेश करती है, यहां पर इस नदी को सियांग के नाम से जानते हैं. दूसरी नदी लोहित है जो तिब्बत से निकलती है. ये नदी भी अरुणाचल प्रदेश के जरिए भारत में आती है. अरुणाचल प्रदेश में करीब 200 किलोमीटर बहने के बाद ये नदी सियांग में मिल जाती है. 

वहीं अरुणाचल प्रदेश से एक नदी निकलती है जिसको दिबांग कहते हैं. ये नदी भी सियांग में मिल जाती है. यानी सियांग, लोहित और दिबांग तीनों नदियां मिलती हैं और असम में प्रवेश करती हैं. इन तीनों नदियों के संगम से ब्रह्मपुत्र नदी बनती है. इसके बाद इसमें तिब्बत से निकली सुबनसिरी नदी, अरुणाचल प्रदेश से निकली कामेंग नदी, डिक्रांग, डिहींग और मानस नदी, नागालैंड से निकली धनसिरी नदी और मणिपुर से निकली बाराक नदी भी ब्रह्मपुत्र में मिल जाती हैं. 

इसके अलावा और भी कई छोटी-बड़ी नदियां अलग-अलग जगहों पर ब्रह्मपुत्र में मिलती जाती हैं. इनमें से अधिकांश नदियां बरसाती नदियां हैं. जून-जुलाई के महीने में जब पहाड़ों पर बारिश होती है तो इनमें खूब पानी आता है और फिर इन सबके मिलने के बाद ब्रह्मपुत्र अपना रौद्र रूप धारण कर लेती है. असम में हर साल आने वाली तबाही की यही असली वजह है.

असम की आधी से ज्यादा जमीन बाढ़ से प्रभावित

असम सरकार की आधिकारिक वेबसाइट का कहना है कि राज्य की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि करीब 78.523 लाख हेक्टेयर जमीन में से 31.05 लाख हेक्टेयर जमीन बाढ़ की वजह से प्रभावित होती है. ये अनुमान राष्ट्रीय बाढ़ आयोग का है. पूरे देश में आने वाले बाढ़ का करीब 9.5 फीसदी हिस्सा अकेले असम से होता है. पूरे देश की तुलना में असम में बाढ़ की तीव्रता चार गुनी अधिक होती है. 

बाढ़ की वजह से औसतन हर साल असम को करीब 200 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ता है. लेकिन क्या सब प्राकृतिक बनावट का ही नतीजा है या फिर इस भयंकर बाढ़ के लिए इंसान भी जिम्मेदार है. अगर इस सवाल का जवाब खोजने की कोशिश करेंगे तो जवाब हां में ही मिलेगा.  इंसानों ने जो किया है, अगर वो नहीं किया होता तो बाढ़ की तीव्रता शायद कम होती.

बांध भी बन रहा बाढ़ का कारण 

बांध बनाकर पहले नदी के बहाव को रोका जाता है और फिर बांध में गेट लगाकर नदी के पानी को नियंत्रित करके छोड़ा जाता है. बांध बनाए जाते हैं ताकि पानी रोककर बिजली बनाई जा सके. 

अब ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों पर पहाड़ी इलाकों में बांध बनाए गए हैं. बारिश के दिनों में जब पानी बांध के लिए खतरनाक हो जाता है तो अचानक से गेट खोल दिए जाते हैं, जिससे एक साथ भारी मात्रा में पानी मैदानी इलाकों में आता है, जो हजारों लोगों को उनका घर छोड़ने पर मजबूर कर देता है. 

इसके अलावा घने जंगल भी पानी के बहाव को रोकने का काम करते थे. लेकिन उनकी कटाई की वजह से पानी की रफ्तार को रोकने वाला कोई नहीं रह गया है.नदियों और झीलों पर अवैध अतिक्रमण ने भी बाढ़ के खतरे को बढ़ा दिया है. 

सरकार इसके लिए कितनी जिम्मेदार

सरकारें बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स का वादा करती हैं. कुछ सरकारें नींव का पत्थर रखकर भूल जाती हैं और कुछ सरकारें प्रोजेक्ट को कुछ दूर ले जाकर काम को अधूरा छोड़ देती हैं. असम के साथ भी ऐसा ही होता है. वहां भी बाढ़ को रोकने के लिए बड़े-बड़े प्रोजेक्ट अनाउंस किए जाते हैं, लेकिन वक्त बीतने के साथ अनाउंसमेंट भी खत्म हो जाती है और असम के लोग हर साल बाढ़ का कहर झेलने को मजबूर हो जाते हैं.

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